खुली सड़क पर रात के अँधेरे में
कमीज की बाहें मोड़ें, रबड़ की चप्पल पहन
रास्ते के छोटे पत्थर को ठोकर मार चलते
बेफिक्री का वो लम्हा ही कुछ और था
कुछ बेमतलब की बातें, वो ज़ोरों के ठहाके
सभी दोस्त और कुछ जो थे अपने
चुटकुले, संवाद और अनगिनत बातें
वो ज़िन्दगी के गाने का अंदाज़ ही कुछ और था
काले बादलों को निचोड़, रस सी टपकती
उन गीली बारिश की लहरों के बाद, सड़क के किनारे
आधे पके भुट्टे पर निम्बू-मसाला रगड़
आधा तोड़ तुमसे बाँट खाना अज़ीज़ था
अपनों की दुनिया में उन सपनो के साथ
तसवीरें सजाना और बातें बनाना
देर रात तक जागना और फिर तकिये से लड़ना
ज़िन्दगी संग हंसने का वो ज़माना ही कुछ और था ||
७ फरवरी २०१५