‘गैजेट’

दो पल भी खाली बैठा नहीं जाता
हाथों में जैसे कुछ खुजली सी होती है
आँखें धुंधलाती सी है, पंजे पसीजते से
शारीर शिथिल हो कचोटता सा है

तपती गर्मी में बिजली के बिना
जैसे पसीने से बदन छटपटाता सा है,
ठीक वैसे ही इस पल बिना किसी ‘गैजेट’ के,
ये मस्तिस्क कुन्हरता – जुहँझलाता सा है

खाली हाथ एक के ऊपर एक धरे
पैर एड़ियों पर चढ़ाये बैठे
बूझता नहीं कुछ, इस खालीपन में
समय रुका हुआ सा, चुभता जाता है

अन्तः, गहरी सासों सहित बिना ज़यादा हिले-डुले
पतलून की जेब टटोल कुछ ठंडक सी मिली,
फट से फ़ोन उठा एक ‘गेम’ चालू किया
बेवजह ये मन घबराता क्यों है?

२१ नवंबर २०१३

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